नई शिक्षा नीति 2020 से संबंधित चुनौतियां (उच्च माध्यमिक शिक्षा के संदर्भ में)
Rekha Paliwal
Research Scholar, Education Department, Madhav University, Abu Road, Sirohi, Rajasthan, India.
*Corresponding Author E-mail:
ABSTRACT:
हाल ही में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति लाई गई जिसे सभी के परामर्श से तैयार किया गया है। इसे लाने के साथ ही देश में शिक्षा के पर व्यापक चर्चा आरंभ हो गई है। शिक्षा के संबंध में गांधी जी का तात्पर्य बालक और मनुष्य के शरीर, मन तथा आत्मा के सर्वांगीण एवं सर्वोत्कृष्ट विकास से है। इसी प्रकार स्वामी विवेकानंद का कहना था कि मनुष्य की अंर्तनिहित पूर्णता को अभिव्यक्त करना ही शिक्षा है। इन्हीं सब चर्चाओं के मध्य हम देखेंगे कि 1986 की शिक्षा नीति में ऐसी क्या कमियाँ रह गई थीं जिन्हें दूर करने के लिये नई राष्ट्रीय शिक्षा नति को लाने की आवश्यकता पड़ी। साथ ही क्या यह नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति उन उद्देश्यों को पूरा करने में सक्षम होगी जिसका स्वप्न महात्मा गांधी और स्वामी विवेकानंद ने देखा था।
KEYWORDS: नई शिक्षा नीति 2020, माध्यमिक स्तर, शिक्षा के सार्वभौमिकरण, लक्ष्य
प्रस्तावना:-
नई शिक्षा नीति से संबंधित चुनौतियाँ:-
राज्यों का सहयोग:- शिक्षा एक समवर्ती विषय होने के कारण अधिकांश राज्यों के अपने स्कूल बोर्ड हैं इसलिये इस फैसले के वास्तविक कार्यान्वयन हेतु राज्य सरकारों को सामने आना होगा। साथ ही शीर्ष नियंत्रण संगठन के तौर पर एक राष्ट्रीय उच्चतर शिक्षा नियामक परिषद को लाने संबंधी विचार का राज्यों द्वारा विरोध हो सकता है।
महँगी शिक्षा:- नई शिक्षा नीति में विदेशी विश्वविद्यालयों में प्रवेश का मार्ग प्रशस्त किया गया है। विभिन्न शिक्षाविदों का मानना है कि विदेशी विश्वविद्यालयों में प्रवेश से भारतीय शिक्षण व्यवस्था के महँगी होने की आशंका है। इसके फलस्वरूप निम्न वर्ग के छात्रों के लिये उच्च शिक्षा प्राप्त करना चुनौतीपूर्ण हो सकता है।
शिक्षा का संस्कृतिकरण:- दक्षिण भारतीय राज्यों का यह आरोप है कि ‘त्रि-भाषा’ सूत्र से सरकार शिक्षा का संस्कृतिकरण करने का प्रयास कर रही है।
फंडिंग संबंधी जाँच का अपर्याप्त होना:- कुछ राज्यों में अभी भी शुल्क संबंधी विनियमन मौजूद है, लेकिन ये नियामक प्रक्रियाएँ असीमित दान के रूप में मुनाफाखोरी पर अंकुश लगाने में असमर्थ हैं।
वित्तपोषण:- वित्तपोषण का सुनिश्चित होना इस बात पर निर्भर करेगा कि शिक्षा पर सार्वजनिक व्यय के रूप में जीडीपी के प्रस्तावित 6ः खर्च करने की इच्छाशक्ति कितनी सशक्त है।
मानव संसाधन का अभावः वर्तमान में प्रारंभिक शिक्षा के क्षेत्र में कुशल शिक्षकों का अभाव है, ऐसे में राष्ट्रीय शिक्षा नीति, 2020 के तहत प्रारंभिक शिक्षा हेतु की गई व्यवस्था के क्रियान्वयन में व्यावहारिक समस्याएँ भी हैं।
राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 दुनिया में सबसे बड़ी प्रणालियों में से एक है, जिसमें 1.5 मिलियन से अधिक स्कूल और 260 मिलियन से अधिक छात्र हैं। देश में शिक्षा का अधिकार अधिनियम के तहत 6 से 14 वर्ष के बच्चों के लिये यह मौलिक अधिकार है। इसके अलावा शिक्षा क्षेत्र में सुधार लाने के लिये केंद्र और राज्य सरकारों द्वारा विभिन्न योजनाएं और कार्यक्रम चलाए जा रहे हैं। भारत की शिक्षा प्रणाली मुख्य रूप से प्राथमिक, माध्यमिक और तृतीयक शिक्षा के कई स्तरों में विभाजित है। हालांकि, देश की वर्तमान शिक्षा प्रणाली में कई चुनौतियां हैं जो विभिन्न स्तरों पर प्रभाव डालती हैं। जैसे -
निम्न गुणवत्ता वाली शिक्षा:- राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 के सामने सबसे महत्वपूर्ण चुनौतियों में से एक शिक्षा की निम्न गुणवत्ता है। हाल के वर्षों में महत्वपूर्ण सुधारों के बावजूद, कई स्कूलों, कॉलेजों और विश्वविद्यालयों में अभी भी प्रशिक्षित शिक्षकों और आधुनिक पाठ्यक्रम का अभाव है। प्रैक्टिकल स्किल डेवलपमेंट की बजाय रटने पर जोर दिया जाता है जिससे छात्रों का ज्ञान वास्तविक दुनिया की परिस्थितियों में लागू नहीं हो पाता है। विश्व बैंक की एक रिपोर्ट के अनुसार, 6 से 14 वर्ष की आयु के लगभग 60ः भारतीय बच्चे अपनी उम्र के अनुसार अपेक्षित स्तर पर नहीं पढ़ सकते हैं, और 70ः बुनियादी अंकगणितीय कार्यों में संघर्ष करते हैं। वहीं एनसीईआरटी के अध्ययन से पता चला है कि सरकारी स्कूलों में केवल 55ः और निजी स्कूलों में 71ः शिक्षक शिक्षा के अधिकार अधिनियम के तहत आवश्यक न्यूनतम योग्यता पूरी करते हैं।
बुनियादी ढांचे की कमी:- राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 की प्रमुख चुनौतियों में से एक स्कूल में बुनियादी सुविधाओं की कमी है। भारत में कई स्कूलों में स्वच्छ पेयजल, अस्वच्छता, शौचालय और खेल के मैदान सहित बुनियादी सुविधाओं का अभाव है। इसका छात्रों की उपस्थिति और प्रदर्शन पर हानिकारक प्रभाव पड़ता है। आवश्यक सुविधाओं की कमी के कारण छात्र अक्सर स्कूल नहीं जाते हैं। 2016 की वार्षिक शिक्षा सर्वेक्षण रिपोर्ट के अनुसार, केवल 68.7ः स्कूलों में योग्य शौचालय की सुविधा थी और लगभग 3.5ः स्कूलों में शौचालय की सुविधा नहीं थी।
छात्र-शिक्षक अनुपात:- छात्र-शिक्षक अनुपात स्कूलों में शिक्षकों की उपलब्धता को दर्शाता है। यूनेस्को की भारत के लिए शिक्षा स्थिति रिपोर्ट 2021 के अनुसार, स्कूलों में 11.16 लाख शिक्षण पद खाली हैं। छात्र-शिक्षक अनुपात वित्त वर्ष 2013 से 22 तक सभी स्तरों पर लगातार बढ़ रहा है। नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ एजुकेशन प्लानिंग एंड एडमिनिस्ट्रेशन (छप्म्च्।) द्वारा किए गए एक अध्ययन के अनुसार, शिक्षक अपना लगभग 19ः समय शिक्षण में लगाते हैं जबकि उनका बाकी समय गैर-शिक्षण प्रशासनिक कार्यों में व्यतीत होता है। जबकि सरकारी शिक्षकों को उनके प्रदर्शन की परवाह किए बिना नौकरी की सुरक्षा की आजीवन गारंटी मिलती है, जिसके परिणामस्वरूप उनकी ओर से कोई जवाबदेही नहीं होती है।
उच्च-ड्रॉपआउट दरें:- हाल ही में केंद्रीय शिक्षा मंत्री धर्मेंद्र प्रधान ने बताया कि 2021-22 तक कई राज्यों में कक्षा 10 में ड्रॉप आउट दर 20.6 प्रतिशत है। उड़ीसा, बिहार, मेघालय, कर्नाटक, आँध्रप्रदेश, असम राज्यों में माध्यमिक स्तर पर स्कूल छोड़ने की दर अधिक है। रिपोर्ट के अनुसार, 6-14 वर्ष की आयु के छात्र अपनी शिक्षा पूरी होने से पहले ही स्कूल छोड़ देते हैं। हालांकि, स्कूल छोड़ने के कई कारक जिम्मेदार हैं जिसमें गरीबी, शौचालयों की कमी, स्कूल की लंबी दूरी, पितृसत्तात्मक मानसिकता और सांस्कृतिक कारक आदि।
वित्तीय संसाधन की कमी:- स्कूलों को केंद्र सरकार से लेकर राज्य सरकार तक फंड मुहैया कराती है। 1968 के बाद से प्रत्येक राष्ट्रीय शिक्षा नीति में कहा गया है कि भारत को अपने सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) का 6ः शिक्षा पर खर्च करने की आवश्यकता है। 2019-20 के आर्थिक सर्वेक्षण के अनुसार, अब तक भारत ने शिक्षा पर अपने सकल घरेलू उत्पाद का केवल 3.1ः खर्च किया। इसके अलावा, बीच में भ्रष्ट मध्यस्थों के कारण पूरे फंड का केवल एक छोटा सा हिस्सा ही स्कूलों तक पहुंच पाता है। धन की उपलब्धता की कमी के कारण स्कूलों की पुस्तकालयों, प्रयोगशालाओं और अन्य बुनियादी सुविधाओं जैसी आवश्यकताओं को स्कूलों द्वारा उचित रूप से प्रबंधित नहीं किया जा सकता है।
शिक्षा की सामर्थ्य और पहुंच:- शिक्षा की सामर्थ्य और पहुंच भारतीय शिक्षा प्रणाली के सामने महत्वपूर्ण चुनौतियां हैं। भारत में शिक्षा अभी भी आबादी के एक बड़े हिस्से के लिए सस्ती नहीं है। इसके अतिरिक्त, शहरी और ग्रामीण क्षेत्रों के बीच शिक्षा की पहुंच में महत्वपूर्ण असमानता है, ग्रामीण क्षेत्रों में कई छात्र गुणवत्तापूर्ण शिक्षा तक पहुंचने के लिए संघर्ष कर रहे हैं। इसके अलावा लिंग भेदभाव भी एक महत्वपूर्ण समस्या है, जिसमें लड़कियां अक्सर समस्याओं का सामना करती हैं।
निजी स्कूलों में एडमिशन प्रक्रिया शुरू हो चुकी है। कहा गया था कि नई शिक्षा नीति के तहत राष्ट्रीय शैक्षिक अनुसंधान और प्रशिक्षण परिषद (छब्म्त्ज्) की किताबें चलेंगी और बस्ते का बोझ कम होगा, लेकिन इस समय धरातल पर कुछ और ही है। पैरंट्स का कहना है कि न तो उनकी जेब का बोझ कम हुआ और न ही बच्चों के कंधे से किताबों का भार। फरीदाबाद में ज्यादातर स्कूल संचालक छब्म्त्ज् की बुक्स के बजाय सपोर्टिंग बुक्स निजी प्रकाशकों से खरीदने को कह रहे हैं। वह भी दुकान से ही किताबें खरीदने के लिए कहा जा रहा है। कुछ स्कूल के अंदर भी बुक्स, यूनिफॉर्म बेचे जा रहे हैं।
इस संबंध में निजी स्कूल संचालकों का कहना है कि छब्म्त्ज् की बुक्स का कॉन्सेप्ट कठिन होता है। स्टूडेंट्स को कॉन्सेप्ट क्लियर करने के लिए सपोर्टिंग बुक्स का सहारा लेना पड़ता है। स्कूलों में टीचर्स भी इतने ट्रेंड नहीं होते कि छब्म्त्ज् की बुक्स से पढ़ा सकें।
शिक्षा पॉलिसी के तहत बस्ते का बोझ कम करने के आदेश हैं। स्कूल संचालकों ने नर्सरी क्लास के बच्चे के लिए 12 से 15 बुक लगाई हैं, ऐसे में बोझ कैसे कम होगा? जब छब्म्त्ज् की बुक्स लगाई गई है तो सपोर्टिंग बुक्स की जरूरत ही नहीं है। सपोर्टिंग बुक्स की कीमत बहुत ज्यादा होती है। मंच ने इस संबंध में शिकायत की तो एक बुक स्टोर पर कार्रवाई भी हुई है। निजी स्कूल संचालकों की मनमानी पर रोक लगाने की जरूरत है।
सिलेबस में बदलाव:- इस वर्ष स्कूलों में न्यू एजुकेशन पॉलिसी को ध्यान में रखते हुए एडमिशन किए गए है। स्कूल शिक्षा निदेशालय ने इस संबंध में स्कूल संचालकों ने निर्देश दिए हैं। नई पॉलिसी के तहत सिलेबस में भी बदलाव किया गया है। जानकारी के मुताबिक, फॉउडेंशन स्टेज में सिलेबस में बदलाव किया गया है। यह बदलाव पहले की तुलना में बच्चों के लिए ज्यादा इंटरेक्टिव है।
मैं सेक्टर-23 से छप्ज् पांच बुक लेने आया हूं। यहां 2000 रुपये की चार बुक ली हैं। स्कूल वालों ने यहीं से बुक लेने के लिए कहा। बच्चों की पढ़ाई दिन-प्रतिदिन महंगी होती जा रही है। हर साल नई किताब खरीदनी पड़ती है। पुरानी हटा दी जाती है। नई शिक्षा नीति के बावजूद बस्ते का बोझ कम नहीं हो रहा है। अधिक किताबें लगाई जा रही हैं।
स्कूलों ने एक दुकान की हुई है सेट:- बताया जा रहा है कि अधिकतर स्कूलों ने अलग-अलग दुकानें सेट की हैं। दुकानदार को बताया गया है कि अभिभावक को किस क्लास की कौन सी बुक देनी है। जानकारी के मुताबिक, एक नामी स्कूल के लिए नर्सरी क्लास की बुक्स की कीमत 1613, स्ज्ञळ की 2524, न्ज्ञळ की 2427, पहली क्लास की 4487, दूसरी की 4676, तीसरी की 5124, चौथी की 6408, पांचवीं की 6764, छठी की 7037, आठवीं की 6552 है। छब्म्त्ज् की बुक्स से इन किताबों की कीमत करीब दो से तीन गुना ज्यादा है।
इस बार फाउंडेशन स्टेज में पढ़ाने के तरीके में बदलाव है। सपोर्टिंग बुक्स लगाना गलत नहीं है। छब्म्त्ज् की बुक्स टफ होती है। इसमें कॉन्सेप्ट क्लियर होना थोड़ा मुश्किल होता है। बच्चों को ध्यान में रखते हुए सपोर्टिंग बुक्स लगाई जाती है। एक क्लास में यदि बुक्स ज्यादा है तो सभी बुक्स को एक ही दिन नहीं पढ़ाया जाएगा। टाइम-टेबल के अनुसार स्टूडेंट्स को बुक्स लाने के लिए कहा जाता है। ऐसे में बस्ते का बोझ अधिक नहीं होगा।
क्या कहता है नियम:- नैशनल एजुकेशन पॉलिसी के माध्यम से छात्रों के स्कूल बैग का वजन और होमवर्क कम किया जाएगा। एक से लेकर 10वीं कक्षा तक के छात्रों के बैग का वजन उनके वजन का 10ः ही होना चाहिए। नई शिक्षा नीति 2022 के तहत बच्चों को वील कैरियर बैग लाने पर भी रोक लगाई जाएगी, क्योंकि इस बैग से बच्चों को चोट लगने का खतरा बना रहता है। इसके अलावा सभी विद्यालयों में एक डिजिटल वेइंग मशीन रखने को भी कहा गया है, जिससे स्कूल बैग का वजन मॉनिटर किया जाना है।
निष्कर्ष:-
केंद्रीय मंत्रिमंडल ने 21वीं सदी के भारत की जरूरतों को पूरा करने के लिये भारतीय शिक्षा प्रणाली में बदलाव हेतु जिस नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति, 2020 को मंज़ूरी दी है अगर उसका क्रियान्वयन सफल तरीके से होता है तो यह नई प्रणाली भारत को विश्व के अग्रणी देशों के समकक्ष ले आएगी। नई शिक्षा नीति, 2020 के तहत 3 साल से 18 साल तक के बच्चों को शिक्षा का अधिकार कानून, 2009 के अंतर्गत रखा गया है। 34 वर्षों पश्चात् आई इस नई शिक्षा नीति का उद्देश्य सभी छात्रों को उच्च शिक्षा प्रदान करना है जिसका लक्ष्य 2025 तक पूर्व-प्राथमिक शिक्षा (3-6 वर्ष की आयु सीमा) को सार्वभौमिक बनाना है। स्नातक शिक्षा में आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस, थ्री-डी मशीन, डेटा-विश्लेषण, जैवप्रौद्योगिकी आदि क्षेत्रों के समावेशन से अत्याधुनिक क्षेत्रों में भी कुशल पेशेवर तैयार होंगे और युवाओं की रोजगार क्षमता में वृद्धि होगी।
REFERENCE:
1. STEM Learning, Published Dec. 28, 2023
2. uoHkkjr VkbEl gfj;k.kk ,aM iatkc
Received on 11.04.2024 Modified on 26.04.2024 Accepted on 06.05.2024 © A&V Publication all right reserved Int. J. Ad. Social Sciences. 2024; 12(2):93-96. DOI: 10.52711/2454-2679.2024.00016 |